अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

जनतंत्र हमारा 
 जनतंत्र को समर्पित कविताओं का संकलन 

 
 
हे राम तेरे देश में
 

हे राम तेरे देश में, इंसानियत परतंत्र है
है शोरगुल चारों तरफ, हैवानियत स्वतंत्र है

जाने कहाँ है तू छुपा, संसार ये दुख से भरा
है लोभ लालच छा रहा, चारों तरफ षडयंत्र है

लेना यहाँ देना यहाँ, रिश्वत बिना जीना कहाँ
ईमान बिकता है यहाँ, अब भ्रष्ट सारा तंत्र है

देखो बहुत सम्मान है, अब चापलूसों का यहाँ
मिलती बहुत दौलत यहाँ, चमचागिरी ही मंत्र है

सारा जहाँ ही भागता, है जा रहा जाने कहाँ
संवेदनायें मर चुकीं, नर हो चुका अब यंत्र है

इज्जत गरीबों की नहीं, मजदूर है बचपन यहाँ
नारी कहीं भी लुट रही, लाचार ये जनतंत्र है

नेता मजे सब ले रहे, हैरान जनता हो रही
तू देख ले फिर भी यहाँ, ये चल रहा गणतंत्र है

- बसंत शर्मा 
१७ अगस्त २०१५


इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter