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उलझे उलझे अपने रिश्ते
ऊपर से सख़्तजान
तय सफ़र कुछ यों भी करना
देख सारे हिसाब
मुझमें इतने खोए आँसू
रौशनी का जब कभी आभास
वो धोखा दे गया

अंजुमन में--
अंधेरों में चमकता
कौन समझेगा
खुद से मिलकर
जो उजालों मे
तुम्हें झूठ से बहलाने में
सिर्फ और सिर्फ

हिसाब मत देना
 

 

ऊपर से सख़्तजान

ऊपर से सख्त जान वो लगता ज़रूर है
पर उसको प्यार करने का पूरा शऊर है

ये बिजलियों को किस तरफ़ मोड़ा है आपने
वो उस तरफ़ तो आशियाँ मेरा हुज़ूर है

इस रहगुज़र में चाहिए अब कोई रहनुमा
पाँवों में है थकान और मंज़िल भी दूर है

वो कौन किसकी बात मुझसे कर रहे हैं आप
कुछ भी कहो हाँ वो मेरी आँखों का नूर है

मिलते रहें हैं आज तलक दूसरों से हम
हर शख्स सच कहूँ तो बस ख़ुद से ही दूर है

१ दिसंबर २००८

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