अनुभूति में
अरुण मित्तल
अद्भुत की रचनाएँ-
नई रचनाएँ-
उलझे उलझे अपने रिश्ते
ऊपर से सख़्तजान
तय सफ़र कुछ यों भी करना
देख सारे हिसाब
मुझमें इतने खोए आँसू
रौशनी का जब कभी आभास
वो धोखा दे गया
अंजुमन में--
अंधेरों में चमकता
कौन समझेगा
खुद से मिलकर
जो
उजालों में
तुम्हें झूठ से बहलाने में
सिर्फ और सिर्फ
हिसाब मत देना
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जो उजालों में
जो उजालों में मिलेंगे शाम को
वो सुबह जैसा कहेंगे शाम को
इन चिरागों में किसी का है लहू
खुद ब खुद ये जल उठेंगें शाम को
वो लतीफा सुनके अब तो चल दिए
गर समझ आया हँसेंगे शाम को
याद रखना इन पलों की दास्तां
इक दफा हम फिर मिलेंगे शाम को
दिलजलों को इसमें इक पैगाम है
यह गजल फिर से पढेंगे शाम को
सूना है मयखाना अब तो गम न कर
लोग बहुतेरे जुडेंगे शाम को शाम को
साथ लेकर हम भी कोई गम गुसार
कब्र पर उनकी मिलेंगे शाम को
२८ जनवरी २००८ |