उलझे उलझे अपने
रिश्ते
उलझे उलझे अपने रिश्ते
जाने हैं ये कैसे रिश्ते
अक्सर बह जाते हैं यों ही
आँसू बन पलकों से रिश्ते
कोई एक निभाए कैसे
एक साथ हाँ दो से रिश्ते
न ये टूटते न जुड़ते हैं
मेरे हैं कुछ ऐसे रिश्ते
यों भी हुआ इश्क में दिल को
तोड़ गए कुछ अपने रिश्ते
खफ़ा बहुत है अरुण आजकल
बिगड़े हैं अद्भुत से रिश्ते
१ दिसंबर २००८
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