रौशनी का जब कभी
आभास रौशनी का जब कभी
आभास मिलता है बहुत
तब दिया भी आँधियों के पास मिलता है बहुत
शायरी कविता गजल मुक्तक हुए सब
फ़ेल हैं
चुटकलों से मंच को उल्लास मिलता है बहुत
देश की खातिर जिए जो देश की
खातिर मरे
उनको मेरे देश में उपहास मिलता है बहुत
मौत की आहट सुनाई देती है चारों
तरफ़
ज़िंदगी का अब कहाँ आभास मिलता है बहुत
मत कहो अब उनसे गुलशन हो रहा
वीरान है
उल्लुओं के घर में अब मधुमास मिलता है बहुत
१ दिसंबर २००८
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