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अनुभूति में अरुण मित्तल अद्भुत की रचनाएँ-

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उलझे उलझे अपने रिश्ते
ऊपर से सख़्तजान
तय सफ़र कुछ यों भी करना
देख सारे हिसाब
मुझमें इतने खोए आँसू
रौशनी का जब कभी आभास
वो धोखा दे गया

अंजुमन में--
अंधेरों में चमकता
कौन समझेगा
खुद से मिलकर
जो उजालों मे
तुम्हें झूठ से बहलाने में
सिर्फ और सिर्फ

हिसाब मत देना
 

  तय सफ़र कुछ यों भी करना

तय सफ़र कुछ यों भी करना और भी अच्छा लगा
तंग राहों से गुज़रना और भी अच्छा लगा

नज़रों नज़रों में ही बातें करना उनसे खूब था
चुपके से दिल में उतरना और भी अच्छा लगा

देखना यों तो बहुत अच्छा लगा पर सच कहूँ
ज़िंदगी तुझको समझना और भी अच्छा लगा

हुस्न पहले भी ग़ज़ब था पर यही सच है, तेरा
अब मेरी खातिर सँवरना और भी अच्छा लगा

यों तो अद्भुत ने सुनाई है ग़ज़ल पहले भी ये
आज इस महफ़िल में पढ़ना और भी अच्छा लगा

१ दिसंबर २००८

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