तय सफ़र कुछ यों
भी करना तय सफ़र कुछ यों
भी करना और भी अच्छा लगा
तंग राहों से गुज़रना और भी अच्छा लगा
नज़रों नज़रों में ही बातें
करना उनसे खूब था
चुपके से दिल में उतरना और भी अच्छा लगा
देखना यों तो बहुत अच्छा लगा पर
सच कहूँ
ज़िंदगी तुझको समझना और भी अच्छा लगा
हुस्न पहले भी ग़ज़ब था पर यही
सच है, तेरा
अब मेरी खातिर सँवरना और भी अच्छा लगा
यों तो अद्भुत ने सुनाई है
ग़ज़ल पहले भी ये
आज इस महफ़िल में पढ़ना और भी अच्छा लगा
१ दिसंबर २००८ |