अनुभूति में
अरुण मित्तल
अद्भुत की रचनाएँ-
नई रचनाएँ-
उलझे उलझे अपने रिश्ते
ऊपर से सख़्तजान
तय सफ़र कुछ यों भी करना
देख सारे हिसाब
मुझमें इतने खोए आँसू
रौशनी का जब कभी आभास
वो धोखा दे गया
अंजुमन में--
अंधेरों में चमकता
कौन समझेगा
खुद से मिलकर
जो
उजालों में
तुम्हें झूठ से बहलाने में
सिर्फ और सिर्फ
हिसाब मत देना
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सिर्फ और सिर्फ
सिर्फ और सिर्फ खामोशी तो नहीं
जिन्दगी मौत से बुरी तो नहीं
आँसुओं से जिसे न सींचा हो
कुछ भी हो पर वो शायरी तो नहीं
दर्द दिल का तुम्हें बताएगा
इश्क है हाँ ये दिल्लगी तो नही
नूर पाने की है तमन्ना भी
पर कभी की वो बंदगी तो नहीं
तुमने अद्भुत कहा है हालेदिल
तुमको खुद से ही दुश्मनी तो नहीं
२८ जनवरी २००८ |