उत्सव की खिड़की से डोलें
रह रह कर कंदील
अंजुरी भरे बताशे खील
लकदक लकदक लड़ियाँ चमकें
जगमग करें कुटीर
मन में उजियारा भरता इक
दीपक जले सुधीर
अल्पनाओं में हल्दी अक्षत
खींचें सुघर लकीर
हर चेहरे पर सजी हुई है
खुशियों की तस्वीर
मावस में उजियारा घोले
रह रह कर कंदील
छूट रही फुलझड़ियाँ आँगन
बाहर झरें अनार
छत पर चढ़कर दिये सजाए
सारा घर परिवार
श्री लक्ष्मी के चरण सुलक्षण
सदा पधारें द्वार
ऋद्धि सिद्धि संग गणपति बप्पा
बने रहें करतार
सुख समृद्धि की भाषा बोले
रह रह कर कंदील
- पूर्णिमा वर्मन