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         लिये हाथों में कंदीलें

लिए हाथों में कन्दीलें, चलो घर को सजाते हैं
जहाँ घर में अँधेरा हो, अभी उठकर भगाते हैं

जो रूठे हैं कई रिश्ते, उन्हें चलकर मनाते हैं
है मन में जो भी कड़वाहट, उसे मिलकर मिटाते हैं

उदासी से भरे चेहरे, हमें अच्छे नहीं लगते
जो खोई है कहीं उनकी, वही मुस्कान लाते हैं

अकेलापन जिन्हें डसता, मिले हैं घाव अपनों से
बुझी आँखों के दीपक की, वही लौ हम जलाते हैं

अमावस रात है माना, अँधेरा है बहुत नभ में
उड़ाकर नभ में कन्दीलें, सितारे हम बनाते हैं

रहो सब प्यार से मिलकर, कहे ये ‘भावना’ सबसे
चलो इस बार कुछ ऐसे, दिवाली हम मानते हैं

- डॉ० भावना कुँअर
१ नवंबर २०२१

     

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