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         जब टँगी कंदील

जब टँगी कंदील तो
सब दीप मुस्काने लगे

रौनकों की अब जुगलबंदी चलेगी
रोशनी को ओढ़ कर इच्छा पलेगी
देख रंगोली को
वे गाने लगे

भर पटाखों में गयीं किलकारियाँ हैं
नेह में शुभ-लाभ के नर-नारियाँ हैं
जगमगाहट प्राप्त
कर भाने लगे

घी सुवासित प्रार्थना के शब्द लेकर
मन मिले मिष्टान्न के उपहार देकर
झिलमिलाने आस
को आने लगे

- कुमार गौरव अजीतेन्दु

१ नवंबर २०२१

     

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