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         दिया कंदील का

खुश बहुत था
इक दिया कंदील का

इक सुरक्षित घर भी उसको मिल गया था
उसका दिल भी उस जगह पर खिल गया था
रंग बिरंगी भी थी दीवारें वहाँ की
मिल रही थी इक झलक सारे जहाँ की
आरज़ू थी नभ में तारों संग छाये
अब हवा का डर भी उसको ना सताये
सैकडों दीपक घरों में टिमटिमाते
देख उसको मन ही मन थे मुस्कराते
सब ये कहते कोई तो पहुँचा है ऊपर
नाम रोशन कर रहा उजियार बन कर

उसका ओहदा
भी था उन्नतिशील का
ख़ुश बहुत था
इक दिया कंदील का

मानता था वह बडा एहसान उसका
वो था रक्षक नाम है कंदील जिसका
पर अचानक एक ऐसा दौर आया
उस दिये का नाम मिट्टी में मिलाया
राज बिजली का वहां भी आ चुका था
और हक़ फिर उस दिये का जा चुका था
उसका दिल पर ये तसल्ली भर रहा था
काम उसका कोई दूजा कर रहा था
चाहे बिजली चाहे मिट्टी का दिया हो
रोशनी बाँटेंगे ये ही प्रण लिया है

ग़म नहीं था
उसको इस तब्दील का
ख़ुश बहुत था
इक दिया कंदील का

- शरद तैलंग
१ नवंबर २०२१

     

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