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         मन की कंदील

झालर झलके झिलमिल-झिलमिल
मन की कंदील जले धीमे

जगमग जगमग बाहर अंदर
कर लें यों दीप्त बंद कंदर
चैतन्य दिखें राहें अनुपम
पावन पथ चलो, चलें धीमे

काली-काली मावस राती
जल उठती है दीया-बाती
अंतर्मन के मद, हर लें हम
फिर ये तम हटे भले धीमे

उत्सव की लो, आयी डोली
आँगन सजती है रंगोली
आनंदित हैं दर दीवारें
खुशियों का बीज पले धीमे

मिलने सखियाँ जब है आती
अवनी रोशन यों हो जाती
संध्या भी आयी उत्साहित
ज्योर्तिमय रात ढले धीमे

- दिव्या राजेश्वरी

१ नवंबर २०२१
     

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