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नदी के तीर
वाले वट |
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काश! हम होते नदी के
तीर वाले वट
हम निरंतर भूमिका
मिलने मिलाने की रचाते
पाखियों के दल उतर कर
नीड़ डालों पर सजाते
चहचहाहट सुन हृदय का
छलक जाता घट
नयन अपने सदा नीरा
से मिला हँस बोल लेते
हम लहर का परस पाकर
खिल खिलाते डोल लेते
मंद मृदु मुस्कान
बिखराते नदी के तट
साँझ घिरती सूर्य ढलता
थके पाखी लौट आते
पात दल अपने हिलाकर
हम रुपहला गीत गाते
झुरमुटों से झाँकते हम
चाँदनी के पट
देह माटी की पकड़ कर
ठाट से हम खड़े होते
जिंदगी होती तनिक सी
किन्तु कद में बड़े होते
सन्तुलन हम साधते ज्यों
साधता है नट
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मनोज जैन मधुर
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
दिशांतर
में-
पद में-
पुनर्पाठ
में-
पिछले
सप्ताह
२२ जून को बेला
विशेषांक-२ में
अंजुमन में-
अश्विनी
कुमार विष्णु,
कल्पना
रामानी,
पंकज
परिमल,
राजेन्द्र स्वर्णकार,
संजू
शब्दिता,
सुरेन्द्रपाल वैद्य,
हरिवल्लभ शर्मा।
कुंडलिया
में-
परमजीत
कौर रीत।
दोहों में-
अरुण
कुमार निगम,
आभा
सक्सेना,
ऋता
शेखर मधु,
कल्पना
मिश्रा बाजपेयी,
ज्योतिर्मयी पंत,
मंजु
गुप्ता,
सुबोध
श्रीवास्तव।
हाइकु में-
डॉ
सरस्वती माथुर।
छंदमुक्त
में-
अश्विन
गाँधी,
आभा खरे,
उर्मिला
शुक्ल,
धर्मवीर
भारती,
परमेश्वर फुँकवाल,
मंजुल
भटनागर,
संतोष कुमार
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