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जहाँ पर मोगरा है |
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हृदय हर जीतता, करता पराजित
मोगरा मन को
सदा वरता कभी करता न शापित मोगरा मन को
निराशा, व्यग्रता, चिंता, व्यथा, अवसाद, व्याकुलता
मिटा देता, सुखी करता अबाधित मोगरा मन को
मनस्थिति रुग्ण, झंझावात में जब चूल हिल जाए
पुनः करता है आसन पर विराजित मोगरा मन को
निरर्थक रव अनर्गल शोर स्वर जब दिग्भ्रमित करते
सुनाता है सदाशय के सुभाषित मोगरा मन को
हुआ संपृक्त, क्षण भर में धवलक्षुप रंग बिखराता
स्वतः ही कोष दे देता अयाचित मोगरा मन को
धवलवस्त्रा सकलगुणदायिनी देवी को प्रिय करता
कलाओं की तरंगों में प्रवाहित मोगरा मन को
प्रिया-वेणी में गुंथ, महकाए यह 'राजेन्द्र' घर-आँगन
करे है स्वप्न भी सुरभित, सुवासित मोगरा मन को
- राजेन्द्र स्वर्णकार
२२ जून २०१५ |
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