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जीते बेला फूल
 

स्पर्धा थी सौंदर्य की, मौसम था प्रतिकूल
सूखे फूल गुलाब के, जीते बेला फूल

चली चिलकती धूप में, जब मजदूरन नार
अलबेली को देख कर, बेला मानें हार

हरदम हँसता देख कर, चिढ़-चिढ़ जाये धूप
बेला की मुस्कान ने, और निखारा रूप

पहले गजरे की महक, कैसे जाऊँ भूल
सुधियों में अब तक खिले, अलबेला के फूल

मंगल-बेला में हुआ, मन से मन का ब्याह
मन्त्र पढ़े थे नैन ने, बेला बना गवाह

बेलापुर से रामगढ़, चले बसंती रोज
बेला का गजरा लिये, वीरू करे प्रपोज

- अरुण कुमार निगम
२२ जून २०१५

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