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बेला पर मोती उगे
 

बेला पर मोती उगे, चुन चुन पोऊँ हार
अपने हाथों से करूँ, नन्हीं का श्रृंगार
नन्हीं का श्रृंगार, करूँ वेणी गजरा से
नजर लगे ना राम, डिठौना दूँ कजरा से
घर में भरे सुगंध, गंध का आता रेला
सबको लेते मोह 'रीत' बिटिया औ' बेला

गंधी रे! आनंद ले, बेला इत्र फुहार
जाकर क्या करना तुझे, दुनिया के बाजार
दुनिया के बाजार, कृत्रिमता काफी भारी
शुद्ध करे संघर्ष, मिलावट की दरबारी
दुनिया जाने मोल रहेगी ना अंधी-रे
सब ही होंगे पास शीघ्र तेरे गंधी- रे

मोती-बेला-मोगरा, विविध भले हैं रूप
हैं गुण सब के एक से, महकें पुँज अनूप
महकें पुँज अनूप, रूप के सब ही शासक
बतलाते हैं वैद्य, व्याधियों के ये नाशक
देने का सुख 'रीत', चाह ही इनकी होती
हरे पात के संग, पुष्प लगते ज्यों मोती

- परमजीत कौर 'रीत'
२२ जून २०१५

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