| अनुभूति में तसलीम अहमद 
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 |  | शादी 
ज़रूरी तो थी, पर क्या करतावक्त ने बदलने ही नहीं दी करवट।
 कनपटी पर सफ़ेदी छाने तक,
 पहचान ही नहीं पाया खुद को।
 हाईस्कूल पास किया-
 पुलिस की वर्दी पहनने का जुनून।
 इंटरमीडिएट-
 सेक्रेटरी या बाबू बनने का ख़याल।
 बीए कंप्लीट-
 सिविल सेवा में जाने का सपना।
 एम.ए. की डिग्री-
 टीचर बन काम चला लूँगा।
 अंतत:
 बेरोजगारी की राह।
 फटे मौजे, टूटे जूते,
 मैल से चिकट बनियान,
 गुस्से से भरा दिमाग,
 सुबह का निकला,
 शाम की थकान,
 बाप की डाँट,
 मां की उम्मीद,
 भाई की नसीहत,
 बहन की उम्मीदें।
 एक लाइन बीवी के लिए नहीं लिखना चाहता था मैं।
 २१ अप्रैल २००८ |