| अनुभूति में तसलीम अहमद 
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 |  | मेरा गाँव 
मुझे नहीं चाहिए-एक कमरे की ज़िंदगी,
 सुबह-शाम का पानी,
 साढ़े आठ बजे का अलार्म,
 मशीन का दूध,
 पलंग के नीचे रसोई,
 पड़ोस का सन्नाटा,
 ऊपरी मंज़िल का शोर,
 गली की किच-किच।
 वाकई, नहीं चाहिए मुझे-
 जोश भरे पल भर के रिश्ते,
 मतलब की दोस्ती,
 जल्दी की दुआ-सलाम,
 ऑफ़िस की जल्दी,
 बसों की भीड़,
 स्टैंड की उदासी,
 रेंगती कारों का रेला,
 मुर्दा दिलों का मेला,
 और...
 धुएँ से लिपटी शाम की बेला।
 नहीं सहन होता मुझसे-
 देर का सोना,
 नींद में रोना,
 उम्मीदों का मरना,
 खुद से डरना,
 क्यों...
 अखबार की हेडलाइंस,
 टीवी का सुर्खियाँ,
 नहीं चाहिए...नहीं चाहिए...नहीं चाहिए
 मुझे यह शहर,
 पर, मेरा गाँव...?
 २१ अप्रैल २००८ |