| अनुभूति में तसलीम अहमद 
की रचनाएँ- नई रचनाएँ-अंतर
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 फ़ोन
 शौहर बीवी
 मुक्त छंद में-परिचय
 ज़िंदगी
 मेरा गाँव
 शादी
 जीवन साथी
 |  | फ़ोन चिट्ठी थी जो एक सहारा, छीन ली थी फ़ोन ने।
 घर से निकलकर माँ से दूरी
 और बढ़ा दी फ़ोन ने।
 बातें सब होती, लेकिनलगता कुछ रह गया,
 अनकही-सी एक कसक
 दिल में बढ़ा दी फ़ोन ने।
 माँ की बीमारी की सुनतड़प उठा जब मेरा दिल,
 अब्बू के कुछ कहने से पहले
 बात काट दी फ़ोन ने।
 अबकी बार आऊँगा माँसच, ये मेरा वादा रहा,
 जब-जब चलने को हुआ,
 टिकट रद करा दी फ़ोन ने।
 उनके लिए जी रहा था,हर तरक्की उनके लिए,
 माँ के शिकवे पर हमेशा
 बात कह दी फ़ोन ने।
 एक दिन ऐसा भी आयामैं ठगा-सा रह गया,
 माँ की मौत की खबर
 चुपके से सुना दी फ़ोन ने।
 ६ अक्तूबर २००८ |