तिमिर को चीर
कर
तिमिर को चीर कर शैशव, उषा का
मुस्कुराता है।
लजा कर सूर्य की आभा से चंदा मुख छुपाता है।
भरे आलिंगन में मधुकर महकती रूपसी कलियाँ।
मनावन कर हठीली का मधुर घूँघट उठाता है।
कहे रजनी से ये चंदा न तन के
दाग देख मेरे।
कहीं न दीठ टेढी जग की मेरे चेहरे को लग जाए।
तेरी आँखों के काजल से ये चंदा मुख सजाता है।
उषा संग प्रीति न मेरी सूर्य
का डाह न मुझको।
मेरी संगी तो इक तू है तेरी है चाहना मुझको।
तेरे आँचल में चुन-चुन कर हज़ारों प्रीति के तारे।
मेरा मन बावला पगली भला क्योंकर सजाता है।
३१ मार्च २००८
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