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अनुभूति में दीपिका ओझल की
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दोहे-
फ़कीर

कविताओं में—
काश
कैसे कहूँ
चंदा
तिमिर को चीर कर
तुहिन की बूँद
दीया
मन का मनका
मुश्किल
मैं पगली
सखी

 

काश

हिय प्रांगण वीरान न होता
पीड़ा का मुझे भान न होता

कल्पनाओं को पंख न लगते
अभिव्यक्ति उन्मान न होता

नैनों से काजल न बहता
स्वप्न कोई पलकों पे रहता

न टूटी मन तारें होती
न यों नित तकरारे होती

मुस्काने को मुझ पाधर के
होंठ अगर ये हिले न होते

फूल अधूरी आशाओं के
मरुमि पर खिले न होते

काश
हमें तुम मिले न होते

९ अक्तूबर २००५

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