कैसे कहूँ
कैसे कहूँ!
नहीं चाहा मैंने
तुमको कभी भुलाना
आशा और निराशा में
भी याद मुझे तुम आए
हुई दुखित कुछ भावनाएँ
जब तुम कलियों संग मुसकाए
हाय!
भला क्यों नहीं ये लम्हे
नेह भरे मैंने पाए?
फिर सोचा और सोच के मैंने
समझाया ये निज उर को
कि तुमको तुम से दूर करूँ मैं
क्यों तुमको मजबूर करूँ मैं?
पर छलक पड़े अश्रु प्याले
मुश्किल था इनको समझाना
कैसे कहूँ!
नहीं चाहा मैंने
तुमको कभी भुलाना
३१ मार्च २००८
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