फ़कीर (दोहे)
मस्त मलंग फकीर की व्यथा ना जाने
कोय
क्यों पल में हँसने लगे फूट-फूट क्यों रोय
लोटपोट हो धूल में शांत चित्त
है आज
स्वांग अनोखा रच रहा देखे भरा समाज
जाने क्यों हँसने लगे उस पर
ही सब लोग
बासी खाने में मिलें जिसको छप्पन भोग
चिथड़ों लिपटी देह है नहीं
उसे ये भान
आज उसे ना चाहिए आदर या सम्मान
भरे पुटलिया गूदड़ी साथ-साथ
ले जाय
क्यों कर भौतिक जगत का मोह न त्यागा जाय
२१ सितंबर २००९ |