मैं पगली
मैं पगली अनजान सखि री
पध से भटक गई थी
मृग जल से निज प्यास बुझाने
पतझर में सावन को पाने
प्रेम क्षुधा को सखि मिटाने
भ्रामक अलि संग अटक गई थी
मैं पगली
यौवन की संध्या बेला में
खोज लिया मैंने अल्हड़पन
क्षण-क्षण अपना रूप निखारा
पल-पल देखा मैंने दरपन
युवा जगत की आँखों को
मेरी तंद्रा खटक गई थी
मैं पगली
मरुथल की रेती में मुझको
दिखी लड़कपन की परछाई
मुरझाई कलियाँ भी मुझको
देख-देख थीं मुस्काईं
प्रेम पत्रिका पाने को नित
मिलने घटक गई थी
मैं पगली
९ अक्तूबर २००५ |