अनुभूति में संगीता
मनराल की
रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अनकही बातें
खिड़कियाँ
दायरे
बरगद
बारह नंबर वाली बस
यादें
काश
बड़ी हो गई हूँ मैं
मुठ्ठी में जकड़ा वक्त
माँ
मेरे गाँव का आँगन
रात में भीगी पलकें
वे रंग |
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रात में भीगी
पलकें
इस रात की भींगी पलकों पर
सुबह का उजाला हो जाए-
वेदना से काँपते अधरों पर
कोई प्रेम-रस बरसा जाए-
जीवन के अंतर्मन की नैया में
कोई ज्ञान का दीप जला जाए-
नित चिंतन नए सवालों में उलझे
मन को कोई राह दिखा जाए-
बगिया में खिलते फूलों को
मन्दिर की राह बता जाए-
इस रात की भीगी पलकों पर...
९ जुलाई २००४
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