अनुभूति में संगीता
मनराल की
रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अनकही बातें
खिड़कियाँ
दायरे
बरगद
बारह नंबर वाली बस
यादें
काश
बड़ी हो गई हूँ मैं
मुठ्ठी में जकड़ा वक्त
माँ
मेरे गाँव का आँगन
रात में भीगी पलकें
वे रंग |
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दायरे
वो दायरे
तुम्हीं ने तो बनाए थे
हमारे रिश्ते के बीच
और आज
तुम ही पूछते हो
क्यों तुम
इतनी पराई लगती हो
जीवन एक रेखागणित
दो जीवन
समांतर चलकर भी
कभी
बिछुड़ जाते हैं
वो नारियल
बेचने वाला
अपने वृत्त की
गोल परिधि में
घूमकर भी
कभी
खो जाता है
और
वो प्रेमी अपनी
पत्नी और प्रेमिका के
प्रेम में पड़कर
एक त्रिभुज के
तीनों कोनों में
असंतोष और भय से
बचता हुआ
भटक-भटककर
थक जाता है
ये जीवन
किसी ज्यामितीय
आकृति से जन्मी
रचना ही है
जहाँ
किन्हीं दो रेखाओं
का कोण
किसी आकृति की
रूपरेखा बदलकर उसे
वर्ग से आयताकार
बनाकर
उन रेखाओं के
बीच की दूरियाँ
बढ़ा देता है
१ अप्रैल २००६
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