अनुभूति में संगीता
मनराल की
रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अनकही बातें
खिड़कियाँ
दायरे
बरगद
बारह नंबर वाली बस
यादें
काश
बड़ी हो गई हूँ मैं
मुठ्ठी में जकड़ा वक्त
माँ
मेरे गाँव का आँगन
रात में भीगी पलकें
वे रंग |
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माँ
माँ
सब कहते हैं
मैं तुम्हारी ही परछाई हूँ
लेकिन
सच यह है
कि मैं तुम तक
कभी पहुँच नहीं पाई हूँ
माँ
तुम प्यार का सागर हो
ममता की गागर हो
क्षमा याचना की मूरत हो
सबसे सुंदर सलौनी
सूरत हो
माँ
तुम महान हो
हम सब की जान हो
तुम ना हो तो क्या जी पाएँगे
तुम बिन कभी न रह पाएँगे
माँ
वादा करो रहोगी साथ
हरदम दोगी प्यार
हमेशा तुम
मैं क्या
कोई तुम सा न होगा कभी-
तुम हो-तुम्हीं तो हो
अनूठी छवि
९ मई २००५
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