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तुम्हारी याद
तुम्हारी याद को
मन में से निकालूँ कैसे?
तुम्हारी याद से दूर
जाऊँ तो जाऊँ कैसे?
तुम्हारी याद को
मन में से
निकालने का प्रयत्न करना
कस्तूरी मृग की तरह
पागल हा कर,
अपने आप से दूर
भागने जैसा है,
क्यों की तुम्हारी याद
मेरे रोम रोम में
बसी हुयी है,
जहाँ भी जाऊँ,
तुम्हारी याद
मेरे साथ साथ
ही आयेगी . . .
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