पाठकों की
दीपावली कविताएँ
ज्योतिर्मय हो जाए:
कविता सिन्हा
आया दीपों का त्यौहार
लाया खुशियों का उपहार
रात अमावस लगे पूर्णिमा
छाई चारों ओर लालिमा
भक्ति भाव से करते पूजा
धन तेरस से भाईदूज तक
संस्कारों से जुड़े हुए हम
परंपराओं को मानें हम
घर आँगन रंगोली सजती
हो पूजा गणपति लक्ष्मी की
मां काली और गोवर्धन की
जो सुख संपति वैभव लाती
द्वारे-द्वारे दीप जलाएँ
नाचें गाएँ धूम मचाएँ
द्वेष क्लेश को दूर भगाएँ
प्रेम सुधा का रस बरसाएँ
ऐसा कुछ माहौल बनाएँ
जन-जन में चेतना जगाएँ
आपस में सौहार्द बढाएँ
अमनशांति की ज्योति जलाएँ
झिलमिल दीपों के प्रकाश से
तन में नव तरंग उठ जाए
मन का अँधियारा मिट जाए
जीवन ज्योर्तिमय हो जाए
स्नेह दीप : अर्चना हरित
मेरे मन के आँगन में
एक स्नेहदीप जला देना
मैं हूँ रात अँधियारी
तुम चंद्र प्रकाश बन आना
शीतल स्निग्ध चाँदनी-सी
एक सुंदर कविता सुना जाना
मंत्र मुग्ध सी मैं बैठी हूँ
तुम हार प्रीत के पहना जाना
मेरे मन के आँगन में
एक स्नेह दीप जला जाना
मैं हूँ रात अँधियारी
तुम चंद्र प्रकाश बन आना
यहीं धरा के आँगन में
कई उम्मीद-सी तुम बिछा जाना
प्रेम की बाहें खोल कर
धीरे-धीरे मुझे बुला लेना
मेरे मन के आँगन में
एक स्नेह दीप जला जाना
मैं हूँ रात अँधियारी
तुम चंद्र प्रकाश बन आना
दिवाली आई : रवि
दीप जले दीवाली आई
घर आँगन में खुशियाँ छाई
खाओ मिठाई मिलो गले
मन में खुशियों के फूल खिले
फूटे बम और जले अनार
श्री गणपति की कृपा अपार
शुभकामना का चलता दौर
बिखरी खुशियाँ चारों ओर
एक दीप मेरा भी : अज्ञात
एक गीत मेरा भी अपने
गायन में रख लो
एक मेघ मेरा भी अपने
सावन में रख लो
जीवन का अनुपम
स्नेह भरा मैने
एक दीप मेरा भी अपने
आँगन में रख लो
गरीबों की दीपावली:
राजकिशोर प्रसाद
दीपक जलाया सही लंबी-लंबी कतारों में
मगर रोशनी पाई गई ऊपर सितारों में।
न जाने यहाँ क्या हुआ पूर्ववत अँधेरा रहा।
रात रात ही रह गई हर तरफ़ सवेरा हुआ।
सितारों से सजा आसमा न फबा
चाँद न रहने से नज़ारा उजरा लगा
हज़ार दिये जलाने से होता है क्या
अमावस ग़रीबी का हटने से रहा।
आगमन लक्ष्मी की होता है वहाँ
पहले से विराजमान रहती हैं जहाँ
यहाँ तो दरिद्रनारायण घुसे हैं।
कहते हैं अब मैं जाऊँ कहाँ।
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जगमग जगमग : बद्री प्रसाद वर्मा 'अनजान'
जगमग दीपक जल उठे
देखो दीवाली आई है,
घरघर में देखो
खुशहाली छाई है।
गली महल्ले में देखो
खूब पटाखे छूट रहे हैं,
सब के चेहरे पर आज
खूब खूशी फूट रही है।
फैला है चारों ओर
उजाला ही उजाला,
अँधेरे का आज
निकल गया दीवाला।
घरघर में खाने को मिलती
ढेर सारी मिठाई,
गले मिल रहे देखो
हिंदू, सिख, इसाई।
लो, आ गई दीवाली फिर : केशव दिव्य
लो, आ गई दीवाली फिर
दीपदीप अब ज्योतित है,
अब पगपग आलोकित है
हृदय-हृदय अब हर्षित है।
बिखरी किरण सोनाली फिर
लो, आ गई दीवाली फिर।
हो गई तम की विदाई
हर गली डगर मुसकाई,
खील, गट्टे संग लाई
छाई अब खुशहाली फिर
लो, आ गई दीवाली फिर।
झूमझूम नाची चरखी
हँस रही है फूलझड़ी,
सजे द्वार और देहलि
दीवार पुती आली फिर
लो, आ गई दीवाली फिर
शुभकामना : संध्या
दिवाली तो हर साल आती रही
घरो घरोंमें खुशियाँ भी लाती रही
इस साल भी दिवाली आई है
खुशियों की बहार भी लाई है।
सबके घरों में प्यार के दीप जलें
सभी साथ मिलकर प्रेमालाप करें
सारे गिले शिकवों को दूर करें
मन के अंधेरों को पार करें।
दिवाली का नन्हा-सा दीपक
करें सबकी रोशन राहें
राह दिखाए ऐसी सबको
जो जो चाहे वो वो पाएँ
दिवाली का माहौल खुशनुमा
लड्डू पेड़े बर्फी खाओ जलेबियाँ
पर कभी भी ना भूलना बाँटना
सबसे मीठे शब्दों की मिठाइयाँ
ऐसी दीवाली : आस्था
दिल ये चाहे
अब के ऐसी
दीवाली आए
दूर हो जाएँ
सब के दुख दर्द,
रोशन हो जाए
सब की ज़िंदगी,
पूर्ण हो जाएँ
मन की मुरादें,
प्राप्त हो जाए
चाही मंज़िल,
उम्मीदों को
दिशा मिल जाए,
हर दिल में खुशियाँ
छा जाए,
आपस में बैर
ख़त्म हो जाएँ,
अपनेपन के
दीप जलाएँ,
अनोखी मिसाल
कायम कर जाएँ,
दिल ये चाहे
अब के ऐसी
दीवाली आए!!
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