अध्यात्म के दोहे
जो आया वो जाएगा, दुनिया एक सराय
कोई आगे चल दिया, कोई पीछे जाय।
क्या लाया था साथ में, क्या जाएगा साथ
आना खाली हाथ है, जाना खाली हाथ।
सुख में सारे यार हैं, दु:ख में साथी चार
इधर प्राण निकले उधर, हुई चिता तैयार।
किस मद में फूला फिरे, क्या है तेरी साख
जिस दिन तन जल जाएगा, पड़ी मिलेगी राख।
खेल-खेल बचपन गया, गई जवानी सोय
बूढ़े तन को देखकर, अब काहे को रोय।
धन दौलत को देखकर, खो मत देना होश।
दुनिया में सबसे बड़ा, धन होता संतोष।
तन सेमल के फूल-सा, पल भर में मुरझाय
कंचन काया देखकर, तू काहे इतराय।
उमर बढ़ी, बचपन गया, अब तो आँखें खोल
उपर वाला जानता, तेरी सारी पोल।
लोभ, मोह से, झूठ से, भाग सके तो भाग
तन की चूनर में कहीं, लग जाए ना दाग़।
जिसके भीतर गूँजता, हर पल प्रभु का जाप
ऐसे प्राणी को नहीं, लगता कोई पाप।
धन के साथी सब मिलें, मन का मिले न कोय
जो मन का साथी मिले, दु:ख काहे को होय।
जब तक मन में लोभ है, मिटे न धन की आस
सागर तट पर कब बुझी, है प्यासे की प्यास।
तन मन सब निर्मल रहें, जब छूटे संसार
प्रभु चरणों में सौंप दो, जीवन का सब भार।
अंतरमन की बेल को, हरि सुमिरन से सींच
फूलों-सा मुस्काएगा, सौं काँटों के बीच।
प्रेम का धागा जो करे, कर ना सके तलवार
सारी दुनिया जीत ले, ढ़ाई आख़र प्यार।
जब तक साँसें चल रहीं, कर लीजै उपकार
वरना खाली जाएगा, परमपिता के द्वार।
मन ही मन में राखिए, प्रभु मिलन का राज़
जीवन के इस भोर में, सुन चुप की आवाज़।
सोने चाँदी से नहीं, देते हैं आशीश।
जो सुमिरन करता उसे, मिलते हैं जगदीश।
वैसा ही आनंद दे, हरि का अनहद नाद
जैसे गूँगे को मिले, मीठे गुड़ का स्वाद।
कोरी-कोरी देह में, भरो भक्ति के रंग
तू हरि जी के संग है, हरि जी तेरे संग।
1 मई 2005
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