उलझी वर्ग पहेली
जैसा
उलझी वर्ग पहेली जैसा
जीवन का हर पल
मन पर हावी हुईं कभी जब
भूखी इच्छाएँ
अस्त-व्यस्त-सी रहीं नित्य ही
सब दिनचर्याएँ
अब है केवल अवसादों का
दलदल ही दलदल
झूठी शान दिखाने की
ऐसी मारा-मारी
कुछ सुविधाओं की एवज में
कर्ज़ चढ़ा भारी
सिर्फ़ तनावों का मरुथल है
कहीं न दिखता जल
ढुलमुल अर्थव्यवस्था के
गहरे गड्ढे पग-पग
आश्वासन के खड़े कंगूरे
भी डगमग-डगमग
इन चुभते प्रश्नों को बोलो
कौन करेगा हल
२ अप्रैल २०१२ |