कॉलोनी के लोग
अपठनीय हस्ताक्षर जैसे
कॉलोनी के लोग
सम्बन्धों में शंकाओं का
पौधारोपण है
केवल अपने में ही अपना
पूर्ण समर्पण है
एकाकीपन के स्वर जैसे
कॉलोनी के लोग
महानगर की दौड़-धूप में
उलझी खुशहाली
जैसे गमलों में ही सिमटी
जग की हरियाली
गुमसुम ढाई आखर जैसे
कॉलोनी के लोग
ओढ़े हुए मुखों पर अपने
नकली मुस्कानें
यहाँ आधुनिकता की बदलें
पल-पल पहचानें
नहीं मिले संवत्सर जैसे
कॉलोनी के लोग
६ सितबंर २०१० |