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पुरखों की यादें
नई ताज़गी भर जाती हैं
पुरखों की यादें
मन को दिया दिलासा, दुख के
बादल जब छाए
ख़ुशियाँ बाँटी संग, सुखद पल
जब भी घर आए
सपनों में भी बतियाती हैं
पुरखों की यादें
स्वार्थपूर्ति का पहन मुखौटा
मिलता हर नाता
अवसादों के अंधड़ में जब
नज़र न कुछ आता
बड़े प्यार से समझाती हैं
पुरखों की यादें
कभी तनावों के जंगल में
भटके जब-जब मन
और उलझनें बढ़ती जायें
दूभर हो जीवन
नई राह तब दिखलाती हैं
पुरखों की यादें
२ अप्रैल २०१२ |