अनुभूति में
योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
की रचनाएँ
नए गीतों में-
आना जाना छोड़ दिया
उलझी वर्ग पहेली जैसा
छोटा बच्चा पूछ रहा है
पुरखों की यादें
रिश्ते बने रहें गीतों में-
आज अपने गाँव में
इच्छाएँ सारी
कॉलोनी के लोग
धीरे धीरे
पीतलनगरी मुरादाबाद के लिये
मुश्किल भरे कँटीले पथ पर
संकलन में-
ममतामयी-
कैसी है अब माँ
|
|
पुरखों की यादें
नई ताज़गी भर जाती हैं
पुरखों की यादें
मन को दिया दिलासा, दुख के
बादल जब छाए
ख़ुशियाँ बाँटी संग, सुखद पल
जब भी घर आए
सपनों में भी बतियाती हैं
पुरखों की यादें
स्वार्थपूर्ति का पहन मुखौटा
मिलता हर नाता
अवसादों के अंधड़ में जब
नज़र न कुछ आता
बड़े प्यार से समझाती हैं
पुरखों की यादें
कभी तनावों के जंगल में
भटके जब-जब मन
और उलझनें बढ़ती जायें
दूभर हो जीवन
नई राह तब दिखलाती हैं
पुरखों की यादें
२ अप्रैल २०१२ |