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अनुभूति में डॉ. तारादत्त निर्विरोध की रचनाएँ-

 

नए गीतों में-
एक अलग हाशिया
चितराम यादों के
शब्दों के पहरे
सुबह सुबह

गीतों में-
झरते हैं फूल-पात
थक गया हर शब्द
धूप की चिरैया
पानी का गीत
सुबह-सुबह

संकलन में-
ज्योतिपर्व- यादों के दीप
होली है- फागुन और बयार
 

 

सुबह सुबह

सुबह-सुबह
को भेंट गई शाम की चुभन,
उस किरन के नाम कोई
पत्र तो लिखो

खुली जो आँख
तो लगा कि रूप सो गया,
साथ जो रहा था आज वह भी खो गया
देह-गंध यों
मिली कि दे गई अगन,
उस अगन के नाम कोई
पत्र तो लिखो

मन किराएदार
था रच-बस गया कहीं,
तन किसी का सर्प जैसे डँस गया कहीं
हम मिले तो
साथ में थी सब कहीं थकन,
उस थकन के नाम कोई
पत्र तो लिखो

मोड़ पर ही
आयु के था वक्त रुक गया,
दूर चल रहा था पाँव वह भी थक गया।
बाँह में था
याद की सिमटा हुआ सपन,
उस सपन के नाम कोई
पत्र तो लिखो

१३ सितंबर २०१०

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