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पानी का गीत
पानी के दरपन पे यों
कंकरी न मारो
बिंबों का
जीवन बिखर जायेगा
पानी के भीतर भी
रहता है पानी,
पानी के ऊपर भी
बहता है पानी
सागर के
पानी को हाथों से तोला तो
लहरों का कंचन
उतर जाएगा
संभव न पानी के
पानी को आँकना,
लगता ज्यों अपने ही
भीतर से झाँकना
यौवन को
दोषों की आँखों से देखा तो
परदे का बचपन
उघर जायेगा
खारा या मीठा हो
पानी तो पानी,
गंदलाया फिर भी
सजल है कहानी
मोती तलाशोगे
निर्जल की तहों से तो
दलदल का दर्शन
उभर जाएगा
८ सितंबर २००८ |