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धूप की चिरैया
उड़ती है पार-द्वार
धूप की चिरैया।
पानी के
दर्पण में,
बिंब नया उभरा,
बिखर गया
दूर-पास, एक-एक कतरा।
पलकों-सी मार गई
धूप की चिरैया।
पूरब में
कुंकुम का,
थाल सजा-सँवरा,
किरणों-सी दुलहन का,
रूप और निखरा।
आँगना गई बुहार
धूप की चिरैया।
यहाँ-वहाँ,
इधर-उधर,
फुदक-फुदक नाचे,
सुख-दुख की आँखों के,
शब्दों को बाँचे।
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धूप की चिरैया।
८ सितंबर २००८ |