अनुभूति में
डॉ.
तारादत्त निर्विरोध
की रचनाएँ-
नए गीतों में-
एक अलग हाशिया
चितराम यादों के
शब्दों के पहरे
सुबह सुबह
गीतों में-
झरते हैं फूल-पात
थक गया हर शब्द
धूप की चिरैया
पानी का गीत
सुबह-सुबह
संकलन में-
ज्योतिपर्व-
यादों
के दीप
होली है-
फागुन
और बयार
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एक अलग हाशिया
आ रे आ शब्द तुझे
अर्थ दूँ नया!
नए-नए काव्य और
अगगिन आयाम
क्रियाहीन वाक्य में
रहे क्यों विराम
शब्दों के गाने का
मौसम था
बीत गया!
टूट रहे मंचों के
अंतिम-से साँस
कितनों में बाँटेंगे
कोरे विश्वास
पढ़ते नहीं लोग अब
गाते हैं मर्सिया!
लीक-लीक चलने से
थकते हैं पाँव
बँधे-बँधे रहने से
जन्मते अभाव
खींचना ही होगा हमें
लिखने के पृष्ठ पर
एक अलग हाशिया!
१३ सितंबर २०१० |