अनुभूति में
डॉ.
तारादत्त निर्विरोध
की रचनाएँ-
नए गीतों में-
एक अलग हाशिया
चितराम यादों के
शब्दों के पहरे
सुबह सुबह
गीतों में-
झरते हैं फूल-पात
थक गया हर शब्द
धूप की चिरैया
पानी का गीत
सुबह-सुबह
संकलन में-
ज्योतिपर्व-
यादों
के दीप
होली है-
फागुन
और बयार
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चितराम यादों के
फिर हुए अंकित हृदय की भित्ति पर
वे सभी चितराम यादों के!
खो गए सब रूप
धूमिल रंग
चढ़ गई जब धूप
बदले ढँग
फिर हुए जैसे समाहित ढेर में
रागमय सुख-धाम यादों के!
तुम नहीं समझे
कि झुकती शाख
आँख है तो आयु
भर की साख
हो रही ज्यों गंध संचित, हवा में
उभर आए नाम यादों के!
कर्म के सब खेल
सोचे कौन
हर हवेली-हार
कब से मौन
लौट आएँगे कभी वे वक्त से
सब प्रवासी राम यादों के।
८ सितंबर २००८ |