ज़िन्दगी तुम मिली
ज़िन्दगी तुम मिली, मुझको वनवास में
अनकही, अनसुनी, अनबुझी प्यास में
उस जुलाहे की गूँथी हुई साँस में
ज़िन्दगी तुम मिली...
शंख सागर को खोकर, रोया बहुत
आरती में बजा, उसने खोया बहुत
ब्रह्म से दूर होने के, अहसास में
ज़िन्दगी तुम मिली ...
पिण्ड उल्का का टूटा, यहाँ आ गया
ब्रह्म का अंश होकर भी, मुरझा गया
छंद टूटा हुआ हूँ मैं, अनुप्रास में
ज़िन्दगी तुम मिली ...
रूप,रस,गंध तन-मन का जाता रहा
काम, मद,लोभ और क्रौध खाता रहा
उम्र ही चुक गई, सारी संत्रास में
ज़िन्दगी तुम मिली ...
लीन हो जायेगी आत्मा-आत्मा
दिव्य दृष्टी मिलेगी वो परमात्मा
सच से होगा मिलन, फिर मधुमास में
ज़िन्दगी तुम मिली ...
२ दिसंबर २०१३