अरे जुलाहे तूने ऐसी
अरे जुलाहे तूने ऐसी, कैसी गाँठ लगाई
टूटे धागों पर भी तेरी, गाँठ नज़र नहीं आई
मैंने देखी तेरी चादर, गाँठ नहीं मिल पाई
मैंने तो रिश्तों की चादर, गाँठ गठीली पाई
ऐसे टूटे मन के मनके, माला ना बन पाई
रिश्तों के जब गाँठ लगी तो, आँख किरकिरी आई
कबीरा के ताने-बाने से, चादर ना बुन पाई
ढाई आखर पीढ़ी पढ़ गई, पंडित नहिं बन पाई
जिस धागे को जोड़ा उसकी, गाँठ कहाँ टिक पाई
टूट-टूट कर टूटा धागा, चादर ओढ़ी न जाई
रंग उड़ा जब चादर धोई, फटी जब पाती लगाई
पाँव पसारे इतने लम्बे, तन भी नहिं ढक पाई
सब घूमें ले फटी चदरिया, गाँठ गठीली भाई
दर्द लिए टूटी गाँठों का, चादर छोड़ी न जाई
२ दिसंबर २०१३