ओ फूलों की गंध
ओ फूलों की गंध उतरकर,
गीतों में आना
शब्द, रूप, रस-गंध उभकर,
बिम्ब बना जाना
रंग बिरंगी छटा बिखेरे,
चितवन में छाना
पुरवाई मे गन्ध लपेटे,
तन-मन महकाना
मंदिर की घण्टी के स्वर में,
शंख बजा जाना
ओ फूलों की गंध
नदी, झील, सागर से रिश्ता,
जोड़-जोड़ जाना
लहरों को तो आता केवल,
छोड़-छोड़ जाना
हवा लाँघकर चौखट देहरी,
चितवन सरसाना
ओ फूलों की गंध
किरण सिरहाने रख लहरों का,
पल में सो जाना
नौकाओं का चलते-चलते
औझल हो जाना
हंस युग्म का पोखर तरना,
मन में खो जाना
ओ फूलों की गंध
२ जुलाई २०१२