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नई रचनाओं में-
अंतिम पहर रात का
आओ ऐसा देश बनाएँ
पनघट छूट गया
बजता रहा सितार

गीतों में-
अरे जुलाहे तूने ऐसी
आँगन और देहरी

आरती का दीप
ओ फूलों की गंध
ओ मेरे गाँव के किसान
जिंदगी तुम मिली
जिंदगी गीत है
मन मंदिर में
राह में चलते और टहलते
सूत और तकली से

 

आँगन और देहरी

आँगन और देहरी के झगड़े
अब तो आम हुए
सारे घर को हमें मनाते
सुबहो-शाम हुए

तेज हवा के झोंके पल में
घर को बाँट गये
दरवाजों को दीमक-घुन
गेहूँ को चाट गये
सूख गया आँगन का बिरवा,
हम बेनाम हुए

कोई कहता है कल से ही
पानी नहीं मिला
आपस के झगड़े में कब से
चूल्हा नहीं जला
छोटी-छोटी बातें लेकर
हम बदनाम हुए

पैसों के झगड़े में कोई
इतना रूठ गया
नाते रिश्ते दूर हुए और
साथी छूट गया
मंदिर की चौखट से ही
बनवासी राम हुए

२ जुलाई २०१२

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