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अनुभूति में सुरेन्द्र शर्मा की रचनाएँ—

नई रचनाओं में-
अंतिम पहर रात का
आओ ऐसा देश बनाएँ
पनघट छूट गया
बजता रहा सितार

गीतों में-
अरे जुलाहे तूने ऐसी
आँगन और देहरी

आरती का दीप
ओ फूलों की गंध
ओ मेरे गाँव के किसान
जिंदगी तुम मिली
जिंदगी गीत है
मन मंदिर में
राह में चलते और टहलते
सूत और तकली से

  बजता रहा सितार

रात पास में
घर के मेरे, बजता रहा सितार।
और सुरों से सुर की निशिदिन, सजती बन्दनवार।
मन सपने फिर आते जाते,
बुनता रहा हजार।

नींद न आई
और पास से, सुर को मैंने देखा।
रातजगे ने जैसे मेरा, खींचा जीवन लेखा।
कीर्तन का है वक्त मुझे तो,
मिलता रहा उधार।

सुर की नदियाँ
बहकर बनतीं, सुरसरि का आधार।
सुर के सुर में छिपा हुआ है, मन मंदिर का प्यार।
सुर का सागर जीवन में यूँ,
बना रहा उपहार।

सुर और ताल
प्रीत में रहके, करते हैं मनुहार।
लय की लय में खोकर देखा, जाना जग निस्सार।
मन मंदिर में प्रीत जगाकर,
बजता रहा सितार।

२८ अप्रैल २०१४

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