अनुभूति में
सुरेन्द्र शर्मा की रचनाएँ—
नई रचनाओं में-
अंतिम पहर रात का
आओ ऐसा देश बनाएँ
पनघट छूट गया
बजता रहा सितार
गीतों में-
अरे जुलाहे तूने ऐसी
आँगन और देहरी
आरती का दीप
ओ फूलों की गंध
ओ मेरे गाँव के किसान
जिंदगी तुम मिलीं
जिंदगी गीत है
मन मंदिर में
राह में चलते और टहलते
सूत और तकली से
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सूत और तकली से
सूत और तकली से अब वे, पल-छिन नहीं रहे
गोबर सनी दीवारें, आँगन वो दिन नहीं रहे
सूत और....
दूध खोजता भटका बछड़ा बाघिन के थन में
एक दुराशा-सी आशा को पाले हम मन में
रहे भटकते भाव भूलकर सूने निर्जन में
हुए विलग खुद से जुड़ने के साधन नहीं रहे
सूत और...
सुख से रहे नहीं धरती पर, अपने जीवन में
चाँद पे बस्ती चले बसाने क्या ठानी मन में
लक्ष्य बदलते रहे सदा ही जनमन नहीं रहे
मन मंदिर के ऑंगन में, आराधन नहीं रहे
सूत और...
लक्ष्मण रेखा लाँघ गये तो सच को पहचाना
स्वर्ण हिरण छलना होता है तब हमने जाना
सूखे खेतों में फसलों के गायन नहीं रहे
हो सबके अनुकूल भाव मनभावन नहीं रहे
सूत और...
२ दिसंबर २०१३
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