अनुभूति में
प्रवीण पंडित
की रचनाएँ—
अंजुमन में-
खुशबू
मीलों मीलों
शुरुआत
सौगात
गीतों में—
एक बार बोलो
कहाँ पर सोया संवेदन
काला कूट
धुआँ
मौन हुए
अनुबंध |
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मौन हुए
अनुबंध
मौन हुए अनुबंध
बरबस पल थिर हुए चला वो
जब आँचल को खींच
सूखी पपड़ी तल नदिया का
ढहते मन के द्वीप
एकाकी निर्जन मे क्योंकर
रहता कब तक संग
मौन हुए अनुबंध
कूल नदी के रहे वियोगी
बूढ़ा हो गया ताल
पग पग हुआ निरुत्तर सुलझे
कैसे कोई सवाल ,
धरा गगन का मिलन मात्र भ्रम
युग-युगांत प्रतिबंध
मौन हुए अनुबंध
कैसा वो आभास निरंतर
पल पल होता ह्रास
चाँद बटोही भूला भूला
खोजे स्वयं उजास
नयनों में सपने उलझाए
रही कुँआरी गंध
मौन हुए अनुबंध
११ अक्तूबर २०१० |