अनुभूति में
प्रवीण पंडित
की रचनाएँ—
अंजुमन में-
खुशबू
मीलों मीलों
शुरुआत
सौगात
गीतों में—
एक बार बोलो
कहाँ पर सोया संवेदन
काला कूट
धुआँ
मौन हुए
अनुबंध |
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काला कूट धुआँ
नस-नाड़ी अग्नि दहकाता काला कूट धुआँ
बन कर आँसू भरी आँख से आया फूट धुआँ
सरसों झुलसी, सूखी तुलसी
घर अँगने बदरंग
मक्खन जैसी देह का छिन मे
छलनी हो गया अंग
अरमानों की फ़सल को पल में ले गया लूट धुआँ
बिटिया बहना निपट अकेली
चौखट बिखरे केश
देह हुलसती लकवा खा गयी
फुलकारी हुई श्वेत
उम्र चौरासी के सपनों को कर गया ठूँठ धुआँ
भटके बछड़ों के सपनों की
ऊँची उड़े पतंग|
रोज़ी-रोटी की आसानी
सीख और सत्संग
काले बादल चीर के उजली दे जाये धूप धुआँ
११ अक्तूबर २०१० |