अनुभूति में
प्रवीण पंडित
की रचनाएँ—
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खुशबू
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सौगात
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एक बार बोलो
कहाँ पर सोया संवेदन
काला कूट
धुआँ
मौन हुए
अनुबंध |
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एक बार बोलो--
बहुत मेरे अपने हो, मुख से
एक बार बोलो
बैठा मौन लगाकर पाश
अँधेरा घोर चुप्प उजास
मानस-भाव-महल की,
धीमे से, कुंडी खोलो
मुख से एक बार बोलो
मुखर नयनों का हरएक भास,
ओंठ पर लिपटा सौम्य सुहास,
बोल पर आरोपित मकरंद
कभी इन कानों मे घोलो
मुख से एक बार बोलो
बहुत ही आकुल है सम्बंध
झटक के शतसहस्त्र प्रतिबंध
टिका कर काँधे पर आनन
दो घड़ी जी भरकर रोलो
मुख से एक बार बोलो
हँसे हर कोण-दिशा अनुराग
न छूने पाये कोई विराग
नयन पाँखुरियाँ कर के बंद
स्वप्न कर लो सजीव, सो लो
मुख से एक बार बोलो।
करो विस्मृत पल पल की पीर
न होने पाए चित्त अधीर
सुनो निर्मल नयनों का नाद
स्वयं को भूल मेरे हो लो
बहुत मेरे अपने हो
मुख से एक बार बोलो।
११ अक्तूबर २०१० |