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अनुभूति में पवन प्रताप सिंह पवन की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
अंतर्मन का हर्ष
धूप सुहानी सी
नौ सौ चूहे मार
वेदनाओं से भरा मन
हाँ विरोध

मुक्तक में-
पाँच मुक्तक

गीतों में-
घर आ जा
तस्वीर गाँव की
पहाड़
बचपन
ये पगडंडियाँ

कहमुकरी में-
बीती यों ही जाए रैना

संकलनों में-
नयनन में नंदलाल- शब्द शब्द वंशी
पिता की तस्वीर- पिता जी
पात पीपल का- पथ निहारता रहता पीपल
फूल कनेर के- डाल डाल पर
मातृभाषा के प्रति- वतन की शान हिंदी
वर्षा मंगल- नीरद डोल रहे
वर्षा मंगल- वर्षा आई

पाँच मुक्तक

१.
आदमी ही आदमी से डर रहा है
कोई ना जाने समय क्या कर रहा है
दूर तक फैला हुआ है तम यहाँ पर
घुट रहा है दम 'जहाँ' अब मर रहा है

२.
झील की सब मछलियाँ क्यों रो रहीं हैं
आँसुओं से झील को क्यों धो रहीं हैं
जाल फेंका है किसी ने झील में क्या
अब अजब-सी हलचलें क्यों हो रहीं हैं

३.
जिन्दगी से जीतकर बन जा सिकंदर
लड़ समय से युद्ध फिर बन जा सिकंदर
मार देगा वक्त तुझको घात से, सुन
वक्त को भी जीतकर बन जा सिकंदर

४.
लाज आती है न इनको, ये महा बेशर्म हैं
कर रहे पाखंड सारे नीच इनके कर्म हैं
क्या कहूँ मैं इस जहाँ के हाल तुमसे अब 'पवन'
है हृदय में घात भारी, और बातें नर्म हैं


फूल का मासूम चेहरा देखकर
रो दिया मैं पास पहरा देखकर
चुभ रहे थे खार हर पल रूह में
हँस पड़े गुल हाल मेरा देखकर

२२ सितंबर २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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