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अनुभूति में पवन प्रताप सिंह पवन की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
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धूप सुहानी सी
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मातृभाषा के प्रति- वतन की शान हिंदी
वर्षा मंगल- नीरद डोल रहे
वर्षा मंगल- वर्षा आई

बचपन

दर्पण टूटा है फिर भी वो,
रोज़ सँवरती है।
देख देख कर बचपन की,
तस्वीर उभरती है।

टूटे हुये खिलौने सारे,
मिट्टी की वो मूरत,
गोल-गोल चन्दा सी रोटी,
वो माँ जी की सूरत,

व्याकुल होता है मानस,
जब याद बिखरती है।

नर्म रेत के ऊँचे टीले,
बारिश की वो रात,
सूना-सूना सा मौसम,
हाथ में उसका हाथ,

इस दुनियादारी में अब तो,
रूह सिहरती है।

२३ जून २०१४

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