अनुभूति में
पवन प्रताप सिंह पवन
की रचनाएँ-
मुक्तक
में-
पाँच मुक्तक गीतों में-
घर आ जा
तस्वीर गाँव की
पहाड़
बचपन
ये पगडंडियाँ
कहमुकरी में-
बीती
यों ही जाए रैना
संकलनों में-
नयनन में नंदलाल-
शब्द शब्द वंशी
पिता की तस्वीर-
पिता जी
पात पीपल का-
पथ निहारता रहता पीपल
फूल कनेर के-
डाल डाल पर
मातृभाषा के प्रति-
वतन की शान हिंदी
वर्षा मंगल-
नीरद डोल रहे
वर्षा मंगल-
वर्षा आई |
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पहाड़
देख-देख दुनिया का मंजर,
रोता रहा पहाड़।
सिसक-सिसक कर झरने बहते,
चीख-चीख कर कोयल गाती,
गुफा-कंदरा सब खाली हैं,
कहाँ गया है वो सम्पाती।
रात-रात भर खुद का आँचल,
धोता रहा पहाड़।
पास खडे हैं जो छोटे गिरि,
उनका कोई नहीं सहारा
आ पहुँचे जब खंजर आरी,
बदल गया तब पूर्ण नजारा।
निष्ठुर लोग बडे पापी हैं,
कहता रहा पहाड़।
२३ जून २०१४ |